
रायपुर। टैगोर नगर पटवा भवन में मंगलवार को उपाध्याय भगवंत युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज ने अशुभ भावों को छोड़ने की सीख दी। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि भावों को परमात्मा से जोड़ दो सदैव शुभ भाव ही आएंगे। भाव बिगड़ने में एक क्षण नहीं लगता। पुरुषार्थ पूर्वक अशुभ भावों से शुभ भाव में आने का प्रयास करना है। अशुभ भावों से बचेंगे तभी शुभ भावों का संस्कार बनेगा।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि दोषों को छोड़ने से ही गुण की प्राप्ति होगी। वस्तु छोड़ना एक माध्यम बन सकता है। अपने दोषों की जिम्मेदारी स्वीकार करना चाहिए। भावों को बिगाड़ना नहीं है। जब हम अपने भावों को अच्छा करेंगे तो दोष हमें स्वयं छोड़ेंगे। दान देना है तो हम दोष नहीं छोड़ते,धन छोड़ते हैं। उपवास करना तो हम आसक्ति नहीं छोड़ते,आहार छोड़ते हैं। चिंतन करें वस्तु को छोड़कर गुण प्राप्त नहीं कर सकते। गुण की प्राप्ति केवल दोष छोड़ने से ही होगी।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि भीतर का अहंकार और क्रोध को छोड़ने से ही क्षमा आएगी। हाथ जोड़कर क्षमा मांगना एक माध्यम हो सकता है। क्रिया ही भाव उत्पत्ति का साधन है। क्रिया के द्वारा भाव को उत्पन्न करना है। पहले दोष छोड़ने का भाव और दूसरा गुण ग्रहण करने का भाव होना चाहिए। यदि दोष निकलते जाएंगे तो क्रोध,लोभ, मोह, माया और आसक्ति भोग के विषय छूटेंगे। गुण बढ़ेगा तो समता, विनय, सरलता, सहनशीलता क्षमन बढ़ेगी।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि भीतर में भी नफा नुकसान देखना होगा। दोष कितने छुटे व गुण कितने बढ़े चिंतन आवश्यक है। मन जब तक दोष छोड़ने के लिए राजी नहीं होगा तो गुण ग्रहण का भाव नहीं होगा। अपने भावों का विश्लेषण करना चाहिए। छोटे-छोटे भावों को कमजोर नहीं मानना चाहिए।विकारों को त्याग करना लक्ष्य बनाना है। लक्ष्य रहेगा तभी प्रयास होगा। भावों को बिगड़ने से कर्म बंध होता है। इच्छाओं, भावनाओं,राग, द्वेष एवं मोह से कर्म बंध होता है। भावों से जो कर्म बंधन करते हैं, उसका भुगतान करना ही पड़ता है।