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कोचिंग सेंटर अब ‘पोचिंग सेंटर’ बन गए हैं, ये प्रतिभाओं के लिए ब्लैक होल बन गए हैं: उपराष्ट्रपति

दिल्ली। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “कोचिंग सेंटर अब ‘पोचिंग सेंटर’ बन गए हैं। वे प्रतिभाओं के लिए ब्लैक होल बन गए हैं। कोचिंग सेंटर तेजी से फैल रहे हैं। यह हमारे युवाओं के लिए खतरनाक है, जो हमारे भविष्य हैं। हमें इस चिंता जनक बुराई से निपटना ही होगा। हम अपनी शिक्षा व्यवस्था को इस तरह कलंकित और दूषित नहीं होने दे सकते।

श्री धनखड़ ने आगे कहा, “अब राष्ट्रों को सेनाओं द्वारा नहीं, बल्कि एल्गोरिद्म के ज़रिए नियंत्रण में लाया जाएगा, क्योंकि सेनाओं की जगह अब एल्गोरिद्म ने ले ली है। संप्रभुता अब आक्रमणों से नहीं, बल्कि विदेशी डिजिटल ढांचे पर निर्भरता के कारण खोएगी।”

उपराष्ट्रपति ने तकनीकी नेतृत्व में निहित देशभक्ति के एक नए दृष्टिकोण का आह्वान करते हुए कहा, “हम एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, नए राष्ट्रवाद के युग में। तकनीकी नेतृत्व देशभक्ति का नया आयाम है। हमें तकनीकी नेतृत्व में विश्व में अग्रणी बनना होगा।”

श्री धनखड़ ने रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आयात पर निर्भरता पर चिंता जताते हुए कहा, “यदि हम बाहर से प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण प्राप्त करते हैं, विशेष रूप से रक्षा जैसे क्षेत्रों में, तो उस देश के पास हमें रोकने की शक्ति है।”

उन्होंने बताया कि डिजिटल युग में वैश्विक शक्ति की गतिशीलता कैसे बदल रही है, और कहा, “21वीं सदी का युद्धक्षेत्र अब ज़मीन या समुद्र नहीं है। पारंपरिक युद्ध के दिन अब बीत चुके हैं। हमारी क्षमता, हमारी शक्ति का निर्धारण कोड, क्लाउड और साइबर द्वारा किया जाना चाहिए।”

राजस्थान के कोटा स्थित भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) के चौथे दीक्षांत समारोह को आज मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “आज हम गुरुकुल की बात कैसे कर सकते हैं – भारतीय संविधान में 22 दृश्य चित्रणों में एक गुरुकुल की भी छवि है। हम हमेशा से ज्ञान के दान में विश्वास करते रहे हैं। कोचिंग सेंटरों को अपने बुनियादी ढांचे का उपयोग कौशल केंद्रों में बदलने के लिए करना चाहिए। मैं सिविल सोसाइटी और मेरे सामने और बाहर मौजूद जनप्रतिनिधियों से आग्रह करता हूँ कि वे इस बीमारी की गंभीरता को समझें। उन्हें शिक्षा में विवेकशीलता बहाल करने के लिए एकजुट होना होगा। हमें कौशल के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है,” उन्होंने कहा।

श्री धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि अंकों के प्रति जुनून सीखने की भावना को किस प्रकार नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने कहा, “उत्तम ग्रेड और मानकीकृत अंकों के प्रति जुनून ने जिज्ञासा को नुकसान पहुंचाया है, जो मानव बुद्धि का एक अभिन्न पहलू है। सीटें सीमित हैं, लेकिन कोचिंग सेंटर पूरे देश में फैले हुए हैं। वे सालों तक छात्रों के दिमाग को तैयार करते हैं और फिर उन्हें रोबोट बना देते हैं। उनकी सोच पूरी तरह से अवरुद्ध हो गई है। इससे कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।”

उपराष्ट्रपति ने छात्रों को ग्रेड से आगे देखने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, “आपकी मार्कशीट और ग्रेड आपको परिभाषित नहीं करेंगे। जब आप प्रतिस्पर्धी दुनिया में कदम रखेंगे, तो आपका ज्ञान और सोच ही आपको परिभाषित करेगी।”

डिजिटल दुनिया की ओर ध्यान दिलाते हुए उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि, “जो स्मार्ट ऐप ग्रामीण भारत में काम नहीं करता, वह पर्याप्त स्मार्ट नहीं है। एक ऐसा एआई मॉडल जो क्षेत्रीय भाषाओं को नहीं समझता, अधूरा है। एक ऐसा डिजिटल टूल जो विकलांगों को बाहर रखता है, अन्यायपूर्ण है।”

श्री धनखड़ ने युवाओं को वैश्विक प्रभाव के लिए स्थानीय समाधान तैयार करने में अग्रणी बनने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, “भारत के युवाओं को तकनीकी दुनिया का सचेत रक्षक बनना होगा। हमें भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए भारतीय प्रणालियाँ बनानी होंगी और उनका वैश्वीकरण करना होगा।”

डिजिटल आत्मनिर्भरता में विश्व का नेतृत्व करने के लिए भारतीयों से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा, “हमें अपने डिजिटल भाग्य के निर्माता के रूप में उभरना होगा और अन्य देशों के दिशा को भी प्रभावित करना होगा। हमारे कोडर, डेटा वैज्ञानिक, ब्लॉकचेन इनोवेटर और एआई इंजीनियर आधुनिक राष्ट्र निर्माता हैं। भारत, जो कभी वैश्विक नेता था, अब उधार ली गई तकनीकों का निष्क्रिय उपयोगकर्ता राष्ट्र बनकर आराम नहीं कर सकता। पहले हम तकनीक का इंतज़ार करते थे। दशकों का अंतराल था। अब यह घटकर हफ़्तों का रह गया है। हमें वास्तव में तकनीक का निर्यात करना चाहिए।”

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