दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज चेतावनी देते हुए कहा, “यदि संसद संवाद, बहस और चर्चा का केंद्र नहीं रहेगी-यदि लोगों के मुद्दों का समाधान नहीं किया जाएगा-तो संसद अप्रासंगिक हो जाएगी। इस तरह की गिरावट हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करेगी, इसलिए संसद को सावधानीपूर्वक पोषित किया जाना चाहिए।” उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से अपील की और भारतीय संविधान को अपनाने के बाद से एक सदी के अंतिम चौथाई भाग में प्रवेश करने के महत्व पर जोर दिया।
आज नई दिल्ली स्थित संसद भवन एनेक्सी में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के परिवीक्षार्थियों को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने विकास या पर्यावरण के मुद्दों को राजनीतिक नजरिये से देखने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने जोर देकर कहा, “यदि हम राष्ट्रीय सुरक्षा या विकास के मुद्दों को राजनीतिक नजरिये से देखना शुरू करते हैं, तो हम संविधान की अपनी शपथ के प्रति सच्चे नहीं हैं। इसके लिए हम सभी को राष्ट्रवाद के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता रखने की आवश्यकता है। हमें हमेशा राष्ट्रीय हित को सबसे पहले रखना होगा।”
विकास और स्थायित्व के बीच संतुलन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “जब भी विकास होता है और विकास की आवश्यकता की अनिवार्यता के कारण वन भूमि के हिस्से के उपयोग को बदलना पड़ता है, तो इसके लिए प्रतिपूरक वनरोपण होना चाहिए। लेकिन वह प्रतिपूरक वनरोपण प्रामाणिक होना चाहिए, वास्तविक होना चाहिए और यही आपको सुनिश्चित करना है।”
भारत की प्रगति का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “हम अमृत काल में हैं और 2047 तक विकसित भारत बनने की राह पर हैं। पूरा देश इस विशाल लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्साहित है। चुनौती कठिन है, लेकिन हासिल की जा सकती है। वर्तमान में, हम 5वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था हैं, जो जापान और जर्मनी से आगे निकलकर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। इसे हासिल करने के लिए हमें अपनी आय में आठ गुनी वृद्धि करनी होगी। प्रत्येक सांसद को प्रत्यक्ष भूमिका निभानी चाहिए, लोगों की आकांक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और राष्ट्र के सपनों को साकार करने के लिए आगे बढ़कर काम करना चाहिए।”
पर्यावरण संरक्षण, सतत विकास और जैव विविधता संरक्षण में वन अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “जो लोग वनों से जुड़े हैं, विशेष रूप से हमारे आदिवासी लोग, प्रकृति और उनकी परंपराओं के प्रति बेहद प्रतिबद्ध हैं।” उपराष्ट्रपति ने परिवीक्षार्थियों से इन समुदायों के प्रति सहानुभूति रखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “अपनी नौकरी में, हमेशा उनके प्रति सहानुभूति रखें।” उन्होंने अधिकारियों से वनों के महत्व और जलवायु सहनीयता व सतत विकास में उनकी भूमिका के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपनी जिम्मेदारियों के साथ गहराई से जुड़ने का आह्वान किया।
भारतीय वन सेवा को तीन अखिल भारतीय सेवाओं में से एक के रूप में मान्यता देते हुए, उन्होंने परिवीक्षार्थियों को भारत की सभ्यतागत जड़ों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा, “हमारे लोकाचार में, हमारे वेदों, पुराणों और उपनिषदों में, आप पाएंगे कि हमने प्रकृति की पूजा की है। वन्यजीवों के साथ हमारा वास्तविक रिश्ता रहा है।”