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सोहराई कला भारत की आत्मा है”: राष्ट्रपति मुर्मु

दिल्ली। झारखंड की सोहराई कला की स्वदेशी भित्तिचित्र परंपरा, राष्ट्रपति भवन में आयोजित कला उत्सव 2025 – ‘आर्टिस्ट्स इन रेजिडेंस’ कार्यक्रम के दूसरे आयोजन में केंद्र बिंदु रही। इस दस दिवसीय रेजिडेंसी कार्यक्रम में भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने भी अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराई और यह भारत की समृद्ध लोक और आदिवासी कला परंपराओं के उत्सव में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बनकर उभरी।
राष्ट्रपति ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया और कलाकारों से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की। उन्होंने अपने संबोधन में, कलाकारों के समर्पण की प्रशंसा करते हुए कहा: “ये कलाकृतियाँ भारत की आत्मा को दर्शाती हैं – प्रकृति से हमारा जुड़ाव, हमारी पौराणिक कथाएं और हमारा सामुदायिक जीवन। मैं इस बात की बहुत सराहना करती हूं कि आप सभी इन अमूल्य परंपराओं को कैसे संजोए हुए हैं।”
इस अवसर पर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, क्षेत्रीय निदेशक डॉ. कुमार संजय झा और आईजीएनसीए क्षेत्रीय केंद्र, रांची की परियोजना सहयोगी सुमेधा सेनगुप्ता उपस्थित थे। सम्मान और परंपरा के प्रतीक स्वरूप, आईजीएनसीए ने राष्ट्रपति को एक पारंपरिक साड़ी भेंट की।

आईजीएनसीए क्षेत्रीय केंद्र, रांची के परियोजना सहायकों – श्रीमती बोलो कुमारी उरांव, श्री प्रभात लिंडा और डॉ. हिमांशु शेखर – ने 14 से 24 जुलाई 2025 तक आयोजित इस कार्यक्रम के लिए कलाकार समूह के साथ समन्वय करने और टीम भागीदारी का प्रबंधन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

झारखंड के आदिवासी समुदायों में प्रचलित पारंपरिक भित्ति चित्रकला ‘सोहराई पेटिंग’ आमतौर पर फसल कटाई और त्योहारों के मौसम में महिलाओं द्वारा बनाई जाती है। प्राकृतिक मिट्टी के रंगों और बांस के ब्रशों का उपयोग करके, कलाकार मिट्टी की दीवारों पर जानवरों, पौधों और ज्यामितीय आकृतियां बनाते हैं – जो कृषि जीवन और आध्यात्मिक मान्यताओं से गहराई से जुड़े होते हैं।

हजारीबाग जिले के दस प्रशंसित सोहराय कलाकार; रुदन देवी, अनीता देवी, सीता कुमारी, मालो देवी, साजवा देवी, पार्वती देवी, आशा देवी, कदमी देवी, मोहिनी देवी और सुश्री रीना देवी ने इस दस दिवसीय रेजिडेंस कार्यक्रम में भाग लिया और दर्शकों के सामने अपनी पारंपरिक कला का प्रदर्शन किया।

कलाकार मालो देवी और सजवा देवी ने अपनी खुशी व्यक्त करते हुए कहा, “हमें इस पहल का हिस्सा बनकर बेहद खुशी हो रही है। अपने राज्य की सोहराई कला को प्रस्तुत करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा।”

अभी तक गोदना, मिथिला और पारली जैसी अन्य पारंपरिक चित्रकलाओं को राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता था लेकिन अब सोहराई कला को इतना प्रतिष्ठित मंच मिलना झारखंड के लिए गर्व की बात है। इस आयोजन ने झारखंड के पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक समृद्धि को भारत के कलात्मक परिदृश्य में अग्रणी स्थान दिलाने में मदद की है।

आईजीएनसीए और रांची स्थित इसके क्षेत्रीय केंद्र ने झारखंड के सुदूर गांवों के सोहराई कलाकारों की पहचान, समन्वय और भागीदारी को समर्थन देकर इस सांस्कृतिक पहल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अथक प्रयासों से यह अनूठी आदिवासी कला राष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित हुई और कलाकारों को लंबे समय से प्रतीक्षित पहचान मिली। आईजीएनसीए ऐसे पारंपरिक कला रूपों के उत्थान और संवर्धन के लिए समर्पित भाव से कार्य करता रहा है।

कला उत्सव 2025 के माध्यम से, सोहराई कला को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली, जो झारखंड के आदिवासी समुदायों की चिरस्थायी भावना का जीवंत प्रतीक है। भारत के स्वदेशी कला रूपों को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए आईजीएनसीए की प्रतिबद्धता ने यह सुनिश्चित किया कि सोहराई के सांस्कृतिक महत्व और सौंदर्य को देश के सबसे प्रतिष्ठित मंचों में से एक पर सम्मानित किया जाए और इसे खूब प्रचारित कर बढ़ावा दिया जाए।

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