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दिल्ली में सौंदर्यबोधक भव्यता का निरूपण

दिल्ली में सौंदर्यबोधक भव्यता का निरूपण

भारत के समस्त सार्वजनिक कला-स्थल हमारी लोक कला और लोक संस्कृति की प्रतिच्छाया हैं। जब हम जन-कला की बात करते हैं,  तो हम इसे गतिशील पाते हैं तथा यह अतीत, वर्तमान और भविष्य का संयोजन करती है। इसके माध्यम से हम पारंपरिक और समकालीन जैसे विभिन्न कला रूपों में विभिन्न विचारों के सम्मिलन को देख सकते हैं। यह कला-रूप जो जनता के लिए स्वतंत्र रूप से सुलभ है; न केवल ध्यान आकर्षित करता है बल्कि विचारों को भी जन्म देता है। यह हमें बताता है कि अमुक कलाकृति यहां क्यों है, इसकी विशिष्टता क्या है, यह किस सामग्री से बनी है और इस कलाकृति के पीछे कलाकार की क्या सोच है। कला विभिन्न दिलचस्प व्याख्याओं के लिए सबको मुक्त कर देती है। ये कुछ ऐसे पहलू हैं जो इस कला को बहुत खास बनाते हैं और लोगों को कला से जोड़ते हैं।

तेजी से बढ़ते शहरीकरण के साथ, जन-कला शहर के कलेवर में विशिष्टता की भावना को बढ़ाती है और सौंदर्य मूल्य जोड़ती है। यह सार्वजनिक क्षेत्र की दृश्य गुणवत्ता में योगदान देती है और समुदाय के गौरव को आत्मीय भावना के साथ प्रोत्साहित करती है। यह आगंतुकों या राहगीरों के मन में छाप छोड़कर उनके यात्रा अनुभव को बढ़ाती है। जन-कला की पहुंच बहुत विशाल और विचारोत्तेजक है। यह किसी विशिष्ट स्थान को दृश्य पहचान देने में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में कार्य करती है। जन-कला सार्वजनिक स्थान को प्रदर्शित करती है और उसमें अर्थ भरती है, जिससे सार्वजनिक स्थान संस्कृति और समाज का अभिन्न अंग बन जाते हैं।

प्रोजेक्ट पीएआरआई (भारत की जन-कला)

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने 21 -31 जुलाई 2024 तक नई दिल्ली में आयोजित होने वाली विश्व धरोहर समिति की बैठक के 46वें सत्र के अवसर पर प्रोजेक्ट पीएआरआई (भारत की जन- कला) की शुरुआत की है। इसके तहत संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्था ललित कला अकादमी ने देश भर से 150 से अधिक विजुअल कलाकारों को आमंत्रित किया है। प्रोजेक्ट पीएआरआई का उद्देश्य दिल्ली के सौंदर्य और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए एक मंच प्रदान करना है, साथ ही हमारी राष्ट्रीय राजधानी की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत में भव्यता जोड़ना है।

ललित कला अकादमी और राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय ऐसी लोक कला को सामने लाना चाहते हैं जो हजारों साल पुरानी कलात्मक विरासत (लोक कला/लोक संस्कृति ) से प्रेरणा लेती हो तथा आधुनिक विषयों और तकनीकों को शामिल करती हो। ये अभिव्यक्तियां भारतीय समाज में कला के अंतर्निहित मूल्य को रेखांकित करती हैं, जो रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रति राष्ट्र की स्थायी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। ये कलाकार आगामी कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक स्थानों के सौंदर्यीकरण के लिए राष्ट्रीय राजधानी में विभिन्न स्थलों पर काम कर रहे हैं।

 

प्रोजेक्ट पीएआरआई का महत्व

सार्वजनिक स्थानों पर कला का प्रतिनिधित्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करता है। सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के माध्यम से कला का लोकतंत्रीकरण शहरी परिदृश्यों को सुलभ दीर्घाओं में बदल देता है, जहां कला संग्रहालयों और दीर्घाओं जैसे पारंपरिक स्थानों की सीमाओं को पार कर जाती है। सड़कों, पार्कों और पारगमन केंद्रों में कला को एकीकृत करके, ये पहल सुनिश्चित करती हैं कि कलात्मक अनुभव सभी के लिए उपलब्ध हों। यह समावेशी दृष्टिकोण एक साझा सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देता है और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ाता है, नागरिकों को अपने दैनिक जीवन में कला से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता है। प्रोजेक्ट पीएआरआई का उद्देश्य संवाद, प्रतिबिंब और प्रेरणा को प्रोत्साहित करना है, जो देश के गतिशील सांस्कृतिक ताने-बाने में योगदान देता है।

विजुअल कला का प्रदर्शन

इस सौंदर्यीकरण परियोजना के तहत पारंपरिक कला रूपों के साथ-साथ मूर्तियां, भित्ति चित्र और प्रतिष्ठान भी बनाए गए हैं। इस परियोजना के तहत तैयार की जा रही विभिन्न दीवार पेंटिंग, भित्ति चित्र, मूर्तियां और प्रतिष्ठानों को बनाने के लिए देश भर के 150 से अधिक विजुअल कलाकार एक साथ आए हैं। रचनात्मक कैनवास में फड़ पेंटिंग (राजस्थान), थंगका पेंटिंग (सिक्किम/लद्दाख), लघु चित्रकला (हिमाचल प्रदेश), गोंड कला (मध्य प्रदेश), तंजौर पेंटिंग (तमिलनाडु), कलमकारी (आंध्र प्रदेश), अल्पना कला (पश्चिम बंगाल), चेरियल पेंटिंग (तेलंगाना), पिछवाई पेंटिंग (राजस्थान), लांजिया सौरा (ओडिशा), पट्टचित्र (पश्चिम बंगाल), बनी ठनी पेंटिंग (राजस्थान), वर्ली (महाराष्ट्र), पिथौरा कला (गुजरात), ऐपण (उत्तराखंड), केरल भित्ति चित्र (केरल), अल्पना कला (त्रिपुरा) शामिल हैं।

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