छत्तीसगढ़राज्य

मोक्ष का पुरुषार्थ ही अंतिम लक्ष्य और जीवन जीने की कला : मनीष सागर

रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में 14 सितंबर से पांच दिवसीय भेद विज्ञान साधना शिविर का शुभारंभ हुआ। प्रथम दिन उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज ने अर्थ, भोग, धर्म और मोक्ष पथ के भेद को धर्मसभा में समझाया। उन्होंने बताया कि मोक्ष का पुरुषार्थ ही अंतिम लक्ष्य और जीवन जीने की कला है। इस सत्य को जो समझ जाएगा वह सुखी और आत्म-आनंद में रहेगा।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि मोक्ष का पुरुषार्थ ही व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। मोक्ष को हम काल्पनिक मान बैठे हैं। जैसे-जैसे आत्मा से राग और द्वेष निकलेंगे तो मोक्ष के पथ पर आगे बढ़ते जाएंगे। मोक्ष जीवन जीने की कला है। मोक्ष को जितना अपनाएंगे राग और द्वेष काम होगा। उतना आनंद बढ़ते जाएगा। आप संसार में सुखी भी होते जाएंगे। आनंद बढ़ाने की कला मोक्ष है। आप यदि इसे आनंद समझेंगे तो आप इस साधना को कहीं पर भी कर सकते हैं।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि संसार में व्यक्ति का एक ही लक्ष्य है सुख की चाहत। व्यक्ति दुख से मुक्ति चाहता है। आप सोचते हैं कि धन का मार्ग सुख प्रदान करेगा। धन रहेगा तो सुख रहेगा। चिंतन करें क्या धन का रास्ता हमें आत्म शांति तक पहुंचा सकता है। धन आने से भोग बढ़ता है। धन खूब कमा लिया तो वह भोग भी बहुत हो जाता है। भोग में तो रोग का भय होता है। इसलिए धन और भोग भी सुख का समाधान नहीं है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हमारी इच्छाएं कभी कम नहीं होती। इच्छाएं बढ़ती ही जाएगी। एक पूरी हो तो दूसरी शुरू हो जाती है। इच्छा करना और पूरी होने के बीच के फैसले को सभी नहीं समझ सकते। इच्छा को हटाना और जीतना है तो कारण को पकड़ना पड़ेगा। अच्छा लगना भी इच्छा पैदा करती है। बुरा लगा भी इच्छा पैदा करती है। अच्छा लगना राग है। बुरा लगना द्वेष है। कोई चीज अच्छी लगे तो उसे पाने की इच्छा होगी। कोई चीज बुरी लग रही तो द्वेष के कारण यह इच्छा होगी कि वह हमसे दूर हो जाए।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि मोक्ष का पुरुषार्थ इच्छाओं पर विजय पाना है। इच्छाओं पर विजय पाना है तो कल्पनाओं से उभरना होगा। सत्य को जानो और मानो। सत्य में जीने से मोह कम होगा। मोह कम होगा तो राग व द्वेष कम होगा। राग व द्वेष कम होने से इच्छाएं कम होगी। इच्छाएं कम होती जाएगी तो आप सुखी होते जाएंगे। धन, भोग, धर्म व मोक्ष में से मोक्ष के पुरुषार्थ को करना शुरू करना है। इस भाव में हो या ना हो आने वाले भावों में मोक्ष जरूर होगा।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि भेद विज्ञान असत्य से सत्य की यात्रा है। यह शिविर आत्मा के द्वारा आत्मा की अनुभूति का एक प्रयास है। हम जी जरूर रहे हैं लेकिन जो असत्य है उसे ही वास्तविकता मानकर जी रहे हैं। जब हम भेद विज्ञान में जाते हैं तो पता चलता है कि हम असत्य में जी रहे हैं। अब हम सत्य का साक्षात्कार कर रहे हैं। व्यवहार मार्ग से निकलकर निश्चय मंजिल तक पहुंचाने की यात्रा भेद विज्ञान शिविर है। यह जिनवाणी और जिन प्रतिमा का सम्यक प्रयोग करने की यात्रा है। भीतर की दुनिया में प्रवेश करना की यात्रा भेद विज्ञान शिविर है।

शिविर 18 सितंबर तक चलेगा। शिविर में प्रतिदिन दो सत्र हो रहे हैं । पहला सत्र सुबह साढ़े आठ से ग्यारह बजे तक और दूसरा सत्र दोपहर ढाई से चार बजे तक । मालूम हो कि शिविर में छत्तीसगढ़ के अलावा कई राज्यों के दो सौ से अधिक साधक भाग ले रहे हैं ।

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