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इस देश में क्षेत्रवाद बनाम राष्ट्रीयता की चर्चा कैसे हो सकती है ? : उपराष्ट्रपति

दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज विभाजनकारी ताकतों से आगाह करते हुए कहा कि , “ मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि हमें जो चुनौती मिल रही हैं, वो जलवायु परिवर्तन से भी ज़्यादा गंभीर चुनौती है…….. [कुछ] लोग जो काम करने की शैली अपना रहे हैं, वह घिनौने तरीके से विभाजन पैदा करना है। विभाजन के कई आधार हैं—जाति, क्षेत्रीयता। मुझे समझ में ही नहीं आता कि इस देश में क्षेत्रवाद बनाम राष्ट्रीयता की चर्चा कैसे हो सकती है? यह कितनी बेतुकी और कितनी आधारहीन है, लेकिन जब आप इसकी जड़ों को देखेंगे, तो राष्ट्र विरोधी ताकतों का हाथ मिलेगा।

कर्नाटक के राणेबेन्नूर में आयोजित कर्नाटक वैभव साहित्य और सांस्कृतिक महोत्सव के तीसरे संस्करण के उद्घाटन समारोह में अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने कहा, “ ये ताकतें [विभाजनकारी ताकतें] अलग-अलग तरीके से काम करती हैं। इन ताकतों ने नए-नए रास्ते अपनाए हैं, और बहुत से मुद्दों पर आप देखेंगे कि ये न्यायपालिका की शरण में जाते हैं। मैं चिंतित हूं, क्योंकि हमारे देश के संविधान ने न्यायिक व्यवस्था में हर व्यक्ति को अधिकार दिया है, और अधिकार क्या है? कि वह न्यायालय की शरण में जा सकता है। लेकिन हाल के वर्षों में, धन का उपयोग करके राष्ट्र विरोधी भावना को बढ़ावा देने के लिए न्यायपालिका तक पहुँच को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है, और यह इस तरीके से हो रहा है, जो दुनिया के किसी भी देश में नहीं हो रहा है।”
उन्होंने आगे अपने भाषण में कहा कि, “देश को चुनौती देने वाली शक्तियां जो राष्ट्रवाद और क्षेत्रीयता में टकराव करने की कोशिश कर रही हैं। इनको बहुत करारा जवाव मिलना चाहिए। वो हमारी सांस्कृतिक विरासत को हिलाना चाहती हैं।”

आज हमें अपने सांस्कृतिक दर्शन को संजोने की आवश्यकता है – हम खुद ही उस टहनी को काटने की कोशिश कर रहे हैं जिस पर हम पनप रहे हैं।
राष्ट्र के सांस्कृतिक दर्शन को संजोने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उपरष्ट्रपति ने कहा , “आज के दिन जब मैं एकतरफ देखता हूँ, तो भारत की प्रगति को दुनिया की नज़र से देखना चाहिए, राष्ट्र के अन्दर बसने वाले लोगों की नज़र से देखो वो बरसात में नाचते हुए मोर के पंख हैं …. पर थोड़ा सा जब मोर के पाँव की ओर देखता हूँ तो मुझे चिंता होती है, चिंतन के लिए विवश हो जाता हूँ और तब मुझे आवश्यकता है- हमारे सांस्कृतिक दर्शन की। की हम खुद ही उस टहनी को काटने की कोशिश कर रहे हैं जिस पर हम पनप रहे हैं, जिस पर हम बैठे हैं।”

देश के अंदर चुनावी प्रक्रिया को कुप्रभावित करने की चेष्टा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “ देश के अंदर जो सबसे पुराना लोकतंत्र है, सबसे मजबूत लोकतंत्र है, सबसे प्रगतिशील लोकतंत्र है, सबसे जीवंत लोकतंत्र है और संवैधानिक दृष्टि से दुनिया का अकेला देश है जो हर स्तर के ऊपर लोकतांत्रिक व्यवस्था रखता है। गाँव हो, शहर हो, प्रांत हो या राष्ट्र हो; संवैधानिक व्यवस्था है। ऐसे देश के अन्दर हमारी चुनावी प्रकिया को, एक तरीके से कुप्रभावित करने की चेष्टा है और यह कुप्रभावित करने की चेष्टा उन लोगो द्वारा है, जिनकी इसमें भागीदारी नहीं होनी चाहिए, पर उनकी भागीदारी है। सामूहिकता से, दृढ़ संकल्प होकर, संकल्प लेकर, एक मानसिकता का विकास करना होगा।”
भारत की आर्थिक प्रगति की ओर ध्यान खींचते हुए उन्होंने कहा, “ दुनिया की श्रेष्ठ संस्थाएँ जैसे IMF, World Bank और अन्य कहते हैं कि दुनिया में अगर कोई चमकता हुआ सितारा है जहां निवेश किया जा सकता है, जहां आपको अवसर मिल सकते हैं, जहां आप अपनी प्रतिभा को चमका सकते हैं, तो वह भारत है। भारत को निवेश और अवसरों के लिए एक वैश्विक पसंदीदा गंतव्य के रूप में माना जाता है।”

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