छत्तीसगढ़राज्य

छत्तीसगढ़ पेंटिंग की दृष्टि से संभावनाओं का गढ़ साबित हो रहा

पेंटिंग प्रदर्शनी में हुई परिचर्चा, अनुभवी व्यक्तित्वों ने कलाकारों को सिखाई बारीकियां

महंत घासीदास म्यूजियम में प्रदेश के 47 कलाकारों की प्रदर्शनी सोहई का हुआ समापन

रायपुर। दिल्ली से रायपुर आए कला समीक्षक व राष्ट्रीय स्तर के कलाकार राम प्रवेश पाल ने कहा कि, छत्तीसगढ़ में संभावनाओं का दीप यहां के कलाकारों ने प्रज्वलित किया है।उन्होंने यहां की समृद्ध लोक परंपरा की चर्चा की। राम प्रवेश कला व्यवसाय के अनेक बिंदुओं पर भी सारगर्भित चर्चा की। विमर्श सत्र में वरिष्ठ पत्रकार व कला समीक्षक वसन्त वीर उपाध्याय, डॉ सुनीता वर्मा, डॉ. अंकुश देवांगन तथा हुकुम लाल वर्मा ने अपने उदगार व्यक्त किए।

वसन्त वीर उपाध्याय ने रायगढ़ की उन गुफाओं का जिक्र किया जहां आदि मानव ने दीवारों पर चित्र उकेरे हैं। उन्होंने कहा कला के संस्कार छत्तीसगढ़ में आदि युग से है।
उल्लेखनीय है इंदिरा कला विश्व विद्यालय के कलागुरु प्रो. मिश्रा की स्मृति में आयोजित कला प्रदर्शनी 12 से 14 जनवरी तक आयोजित है।

आयोजन के संयोजक डॉ. ध्रुव तिवारी ने वक्ताओं सहित कलाकारों का सम्मान किया। इस अवसर पर स्पेशल सोहइ केक काट कर डॉ. सुनीता वर्मा ने आयोजन के चर्चा सत्र की शुरुवात की।बड़ोदरा से आईं डॉ. तरुणा ने कार्यक्रम का संचालन किया। आरती मुले की वंदना व सरिता श्रीवास्तव के भाव नृत्य ने सबको प्रभावित किया।
राजधानी में लगी प्रदर्शनी का 14 अप्रैल सोमवार को समापन हुआ।

परिचर्चा के समापन पर सभी कलाकार कलाकारों का सम्मान किया गया। परिचर्चा के बाद शाम को प्रदर्शनी में लोगों की काफी संख्या में उपस्थिति रही। उन्होंने CGPAG के कलाकारों की पेंटिंग तो काफी पसंद किया और उनकी सराहना की।

CGPAG के क्यूरेटर डॉ. ध्रुव तिवारी कहते हैं कि मुझे बेहद खुशी और गर्व है कि मैं छत्तीसगढ़ की जीवंत और विविध कलात्मक भावना के उत्सव, CGPAG की उद्घाटन प्रदर्शनी “सोहई” में आपका स्वागत करता हूँ। यह प्रदर्शनी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है क्योंकि यह हमारे क्षेत्र के 45 प्रगतिशील कलाकारों को एक साथ लाती है, जिनमें से प्रत्येक ने हमारे सांस्कृतिक परिदृश्य के कैनवास पर अपनी अनूठी दृष्टि और रचनात्मकता का योगदान दिया है।

कला हमेशा अभिव्यक्ति, प्रतिबिंब और परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली माध्यम रही है। “सोहई” के माध्यम से, हमारा लक्ष्य छत्तीसगढ़ में मौजूद कलात्मक प्रतिभा के समृद्ध ताने-बाने को प्रदर्शित करना है, जो हमारे कलाकारों को अपनी कहानियों, सपनों और दृष्टिकोणों को दुनिया के साथ साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह प्रदर्शनी केवल कलाकृतियों का प्रदर्शन नहीं है; यह एक संवाद है, कलाकार और दर्शक के बीच एक वार्तालाप है, जो आपको व्यक्तिगत स्तर पर टुकड़ों का पता लगाने, व्याख्या करने और उनसे जुड़ने के लिए आमंत्रित करता है।

सीजीपीएजी के संस्थापक श्री जितेन साहू बताते है कि छत्तीसगढ़ प्रगतिशील कलाकार समूह (सीजीपीएजी) की यह पहली समकालीन कला प्रदर्शनी है। राज्य सरकार नियमित रूप से लोक कला और परंपराओं पर केंद्रित कार्यक्रम आयोजित करती है, उन्हें मंच प्रदान करती है, लेकिन छत्तीसगढ़ के गठन के दो दशक से अधिक समय बाद भी, समकालीन कलाकारों को मंच प्रदान करने वाली कोई संस्था या अकादमी नहीं है। सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ, कलाकारों का एक समूह स्वेच्छा से सीजीपीएजी का गठन करने के लिए एक साथ आया है, जो एक गैर-वाणिज्यिक, रचनात्मक और सृजनात्मक दृष्टिकोण के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।

वे दिन जब महाकोशल कला परिषद और इसके संस्थापक कल्याण प्रसाद शर्मा छत्तीसगढ़ में कलाओं को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे थे, अब अतीत की बात लगती है। जहाँ तक मुझे याद है, ललित कला अकादमी गैलरी में एक बार बिहनिया नामक एक प्रदर्शनी आयोजित की गई थी, जिसका उद्घाटन एस.एच. रजा ने किया था। तब से, छत्तीसगढ़ में समकालीन कला के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय सन्नाटा छा गया है।

छत्तीसगढ़ के कुछ कलाकार निश्चित रूप से कला के क्षेत्र में खुद को स्थापित कर पाए हैं। हालांकि, राज्य में लोक कला के क्षेत्र में गतिविधियां बहुत कम हैं।

सीजीपीएजी महज एक समूह नहीं है, यह एक विचार है। यह सामूहिक भावना और भागीदारी का प्रतिनिधित्व करता है। निस्संदेह, आने वाले समय में सीजीपीएजी छत्तीसगढ़ के समकालीन कला आंदोलन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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