छत्तीसगढ़राज्य

अनेकांतवाद हर व्यक्ति की आवश्यकता : मनीष सागर

रायपुर। टैगोर नगर पटवा भवन की धर्मसभा में शनिवार को उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज ने कहा कि व्यवहार में आपको अनेकांतवादी बनना होगा। अनेकांतवाद हर व्यक्ति की आवश्यकता है। वस्तु खुद अनेकांत है।।वस्तु के अनेक गुण होते हैं। इसलिए वस्तु को अनेक नजरिये से देखना है। वस्तु अनेक पक्ष वाली होती है। उसे एक तरह से नहीं समझा जा सकता। वक्ता यदि अनेकांत वाला है तो श्रोता को भी अनेकांत वाला होना चाहिए।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि परमात्मा ने कोई कथन कहा है तो इसके दूसरे भी आयाम है। परमात्मा के कथन को यदि एकांत से ग्रहण कर लेंगे तो गड़बड़ हो जाएगी। परमात्मा के कथन को समझना होगा कि वह किस अपेक्षा से बोला गया है। इसलिए हमें जिनवाणी समझ में नहीं आती है। जिनवाणी को अनेकांत से सुनकर उस दृश्य को बनाना होगा। जब तक हम अनेकांत दृष्टि से नहीं समझेंगे, तब तक जिनवाणी समझ में नहीं आएगी।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि सिद्धांत बनाने में कंजूसी ना करें। सिद्धांत परिपूर्ण बनाओ। सिद्धांत सही बनेगा तो आचरण में ला पाएंगे। सिद्धांत नहीं बनाएंगे तो आचरण में आएगा नहीं। लक्ष्य निर्धारित करना होगा। तभी उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आप चलना शुरू करोगे।।जिनवाणी को समझने का प्रयास कर रहे। जिनवाणी को नहीं समझा तो असरकारी नहीं होगी। जैन धर्म के तीन मुख्य सिद्धांत अहिंसा,अनेकांत और तीसरा अपरिग्रह है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि अहिंसा को समझना थोड़ा आसान है और अपरिग्रह को भी समझा जा सकता है। अनेकांत को समझना कठिन हो जाता है। अहिंसा अर्थात किसी को सताना नहीं। किसी से हिंसा नहीं करना। वहीं जो हम वस्तु का संग्रह करते हैं। वस्तु के प्रति राग,इच्छाएं होती है यह परिग्रह है। इसके विपरीत अनासक्ति का जीवन अपरिग्रह है। अपरिग्रह को समझना इसलिए कठिन है। वस्तु खुद अनेकांत है। इसलिए वस्तु को अनेक नजरिए से देखना होता है। उस नजरिया से हम वस्तु को समझेंगे। तभी अनेकांत दृष्टि से हम वस्तु के अनेक गुण को समझ पाएंगे।

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