दिल्लीराज्य

कुछ लोग अज्ञानतावश हमारी आध्यात्मिकता को अंधविश्वास का नाम दे देते हैं : उपराष्ट्रपति

दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि कुछ लोग अज्ञानतावश आध्यात्मिकता जैसे हमारे सात्विक तत्वों को अंधविश्वास का नाम दे रहे हैं। इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कि सनातन का तात्पर्य समावेशिता से है, धनखड़ ने कहा, “कुछ लोग, अज्ञानतावश या अंधाधुंध अर्थ प्राप्ति में लगे होने के कारण, गलत तरीके से आध्यात्मिकता जैसे हमारे सात्विक तत्वों को अंधविश्वास का नाम दे देते हैं।”

उन्होंने कहा, “हर बात का जवाब आज के दिन सनातन में मिल सकता है। सनातन जो सिखाता है वह आज की व्यवस्था के लिए आवश्यक है, चाहे वह दुनिया में कहीं भी हो। सनातन का तात्पर्य समावेशिता से है, सनातन का तात्पर्य सार्वभौमिक अच्छाई से है, सनातन का तात्पर्य आत्मा की सर्वोच्चता से है। सनातन अधीनता में विश्वास नहीं करता। यदि आप सनातन के प्रति समर्पण करते हैं, तो आप बंदी नहीं हैं, आप एक स्वतंत्र व्यक्ति, एक स्वतंत्र आत्मा बन जाते हैं।”

उन्होंने कहा, “धर्म को संकीर्ण व रूढ़िवादी तरीके से नहीं देखा जा सकता। धर्म का आकलन संकीर्ण दायरे में नहीं किया जा सकता। हमें धर्म के सही अर्थ को समझना होगा और तभी हमें अंदाजा होगा कि हम सभी को कृतसंकल्प होकर भारत को फिर से ‘विश्व गुरु’ बनाना है। और भारत का विश्व गुरु बनना दुनिया के लिए सबसे बड़ा शुभ संदेश है।”

गौड़ीय मिशन के संस्थापक आचार्य श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की 150वें आगमन उत्सव के समापन समारोह में सभा को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “हमारी संस्कृति में, हमने क्रूरता, आक्रमण और बर्बरता को सहन किया है… हमारे धार्मिक स्थानों, हमारे सांस्कृतिक प्रतीकों का किस तरह की बर्बरता, उग्रता और लापरवाही से विनाश हुआ! जब नालन्दा में आग लगाई गई तो अंदाजा लगाइए कि क्या-क्या नष्ट हुआ! नालन्दा में कितनी मंजिलें थीं, कितनी लाख किताबें थीं और वह सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए थीं। आज तकनीक की प्रगति का हमारे ज्ञान के भंडार में संग्रहीत ज्ञान से कोई न कोई संबंध है।

अपने संबोधन में उन्होंने आगे कहा, “’यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भूमि है, जिन्होंने राष्ट्रवाद से कभी समझौता नहीं किया. और यह कितना बड़ा बलिदान था! आज हम सौभाग्यशाली समय में हैं कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जो चिंताएं थीं, उनके विचार थे, राष्ट्रवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी और जो नासूर उन्हें नजर आया था, वह अब हमारे संविधान में मौजूद नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button