
दिल्ली। एक नई साइफन-आधारित तापीय विलवणीकरण प्रणाली अब खारे समुद्री जल को स्वच्छ पेयजल में परिवर्तित कर सकती है। यह प्रणाली मौजूदा तरीकों की तुलना में अधिक तीव्र, किफायती और विश्वसनीय है।
प्रकृति के जल चक्र का अनुसरण करने वाले पारंपरिक सौर स्टिल को लंबे समय से साधारण जल शोधक के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। हालांकि, उन्हें दो चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
नमक का जमाव, जहां वाष्पीकरण सतह पर पपड़ी बन जाती है, जिससे पानी का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है।
स्केलिंग सीमाएं, क्योंकि विकिंग सामग्री केवल 10-15 सेमी तक ही पानी उठा सकती है, जिससे सिस्टम का आकार और आउटपुट सीमित हो जाता है।
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के एक अनुसंधान दल ने एक बहुत ही सरल सिद्धांत यानी साइफनेज का इस्तेमाल करके दोनों चुनौतियों का समाधान किया है।
उनकी प्रणाली के केंद्र में एक मिश्रित साइफन है। यह एक कपड़े की बत्ती है, जो एक नालीदार धातु की सतह से जुड़ी होती है। यह कपड़ा एक जलाशय से खारे पानी को खींचता है, जबकि गुरुत्वाकर्षण एक निर्बाध, निरंतर प्रवाह सुनिश्चित करता है। नमक को क्रिस्टलीकृत होने देने के बजाय, साइफन जमा होने से पहले ही उसे बहा देता है।
चित्र 1. बहुस्तरीय साइफन विलवणीकरण प्रणाली
पानी गर्म धातु की सतह पर एक पतली परत के रूप में फैलता है, वाष्पित होता है और फिर केवल दो मिलीमीटर दूर एक ठंडी सतह पर संघनित हो जाता है। यह अति-संकीर्ण वायु अंतराल दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि करता है, जिससे सूर्य के प्रकाश में प्रति वर्ग मीटर प्रति घंटे छह लीटर से अधिक स्वच्छ पानी उत्पन्न होता है, जो पारंपरिक सौर स्टिल्स की तुलना में कई गुना अधिक है।
बहुविध वाष्पीकारक-कंडेंसर को एक साथ जोड़कर, यह उपकरण बार-बार ऊष्मा का रीसाइकल करता है तथा सूर्य की प्रत्येक किरण से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करता है।
यह विलवणीकरण इकाई कम लागत वाली, अधिक मात्रा में उत्पादक और टिकाऊ है, जो केवल एल्युमीनियम और कपड़े जैसी साधारण सामग्रियों पर निर्भर करती है। यह सौर ऊर्जा या अपशिष्ट ऊष्मा से चल सकती है, जिससे यह ऑफ-ग्रिड समुदायों, आपदा क्षेत्रों और शुष्क तटीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। उल्लेखनीय रूप से, इस प्रणाली में अत्यधिक खारे पानी (20 प्रतिशत तक नमक) में मौजूद नमक जम नहीं पाता है, जो इस प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाता है। खारे पानी के उपचार में यह एक बड़ी प्रगति है।