
रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में शनिवार को चातुर्मासिक प्रचवनमाला में परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज ने कहा कि जीवन का एक लक्ष्य स्वयं को पहचाना जरूर होना चाहिए। इसे तमाम शंकाओं का निराकरण करके समझेंगे तभी श्रद्धा पैदा होगी। शंकालु प्रवृत्ति छोड़ने पर ही श्रद्धा जागृत होगी। जहां शंका होती है,वहां मैत्री भाव को हटाकर ईर्ष्या और जलन पैदा करती है।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि शंका को हटाकर,मोह को हटाकर चिंतन करना आवश्यक है,तभी ज्ञान भीतर आएगा। तभी सत्य तक पहुंचेंगे। ज्ञान पर श्रद्धा होगी तो वही सत्य तक ले जाएगी। यही श्रद्धा मोक्ष तक पहुंचाएगी। प्रतिदिन प्रवचन में आप जितना सुनते हो उस पर चिंतन करना जरूरी है,तभी सत्य की प्राप्ति होगी।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि यदि हमें हमारी प्रवृत्ति को अच्छा बनाना है तो हमारी वृति को अच्छा बनाना होगा। यदि हमारी प्रवृत्ति गलत चल रही है तो हमें वृति को सुधारना पड़ेगा। जब जीवन के अनेक प्रसंगों से गुजरते हैं तो भीतर के वृत्ति में भिन्नता समझ में आती है। जो शंकालु प्रवृत्ति का होता है उसे समझाना बहुत मुश्किल होता है। जो श्रद्धालु प्रवृत्ति का होता है उसे समझाना भी सरल है और वह समझना भी चाहता है। श्रद्धालु को समझाने वाले के प्रति समर्पण होता है।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हमारे भीतर स्थूल सत्य के बारे में निर्णय करने की समझ होगी ही। हम सूक्ष्म सत्य का निर्णय कर सके ऐसी हमने हमारी योग्यता का विकास नहीं किया है। सूक्ष्म सत्य का निर्णय इसलिए नहीं होता क्योंकि उसकी योग्यता नहीं होती। सत्य को पहले सुनना जरूरी है। उस सत्य पर फिर चिंतन करना जरूरी है। हमारा मिशन तत्व श्रवण से प्रारंभ होगा लेकिन तत्व निर्णय और श्रद्धा व आस्था तक पहुंचे वही सत्य है। हम भले ही स्थूल सत्य में जिएंगे लेकिन हम सूक्ष्म सत्य को देख लेंगे।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि अपने अस्तित्व की सच्चाई को खोजने वाला बनना पड़ेगा। श्रद्धा में भी एक सोच का विचार होता है। श्रद्धा का आधार विज्ञान होता है। आप कुछ चीज सोच लेते हैं फिर श्रद्धा करते हैं तो वह श्रद्धा स्थिर होती है। अपने अंदर धैर्य व गुण की कमी हो तो हमें शंका अधिक होगी और श्रद्धा कम होगी। हमारी प्रवृत्ति क्या है यह पता होना चाहिए। शंका करते रहोगे तो श्रद्धा कभी स्थिर नहीं होगी।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जो श्रद्धालु होते हैं वे सद्गुरु से सत्य को प्राप्त कर उसको ग्रहण करते हैं। उस सत्य का पोषण करते हैं। धैर्य व स्थिरता पूर्वक सत्य का चिंतन और मनन करते हैं। जो शंका करते हैं वे सत्य को सुनकर भी उसे पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। ऐसा करने से सत्य उनके कानों तक पहुंच नहीं पाता है। जो श्रद्धालु होगा वह हमेशा अपने सद्गुणों को बढ़ाते जाएगा। सद्गुणों का विकास होगा तो परमात्मा भी प्रसन्न होंगे।