भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि “शिक्षा के व्यावसायीकरण ने उसकी गुणवत्ता को प्रभावित किया है। शिक्षा कभी भी आय का स्रोत नहीं था, यह त्याग और दान का एक माध्यम था, जिसका उद्देश्य समाज की मदद करना था लेकिन हम देखते हैं कि इसको फायदे के लिए बेचा जा रहा है। कुछ मामलों में तो यह जबरन वसूली का रूप ले रहा है।”
राजस्थान के सीकर में आज शोभासारिया शैक्षिक समूह के रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा “समय आ गया है कि हमें अपने टियर 2 और टियर 3 शहरों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, पारिस्थितिकी तंत्र और समग्र विकास के लिए छात्रों के लिए स्थानीय लाभ मौजूद है।” अपने सम्बोधन में उपराष्ट्रपति ने कहा कि “हमारा संकल्प होना चाहिए कि जब भारत 2047 में विकसित राष्ट्र बने तो हम विश्व की महाज्ञान शक्ति बनें।”
व्यापार, उद्योग, वाणिज्य और व्यवसाय जगत में लोगों से अपील करते हुए उपराष्ट्रपति ने उन्हे संस्थानों के विकास में उदारतापूर्वक योगदान देने की बात कही। उन्होंने कहा “शिक्षा में कोई भी निवेश हमारे भविष्य, हमारे आर्थिक उत्थान में, शांति और स्थिरता में निवेश है।”
कार्यक्रम के दौरान अपने सम्बोधन में श्री धनखड़ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि “एक नई बीमारी और है – विदेश जाने की, विदेश में पढ़ाई करने की। बच्चा लालायित होकर जाना चाहता है, उसको नया सपना दिखता है, उसको लगता है कि वहां जाते ही स्वर्ग मिल जाएगा।” उन्होंने आगे कहा कि यह एक अंधाधुन्ध रास्ता है जिसमें देश का युवा विज्ञापनों से प्रभावित होकर फैसले ले लेता है। उन्होंने कहा कि उसका यह फैसला देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर एक गहरी चोट है।
शिक्षा में तकनीकी विस्तार पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि “आज के दिन टेक्नोलॉजी हमारे बीच आ गई है। हम इसका उतना उपयोग नहीं कर पा रहे हैं जितना होना चाहिए। हमारे अध्यापक और अध्यापिकाओं में यह प्रतिभा है किन्तु हम भौतिक बाधाओं से घिरे हुए हैं। हमें शिक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए जिससे हमारे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में काफी मदद मिलेगी।”
व्यापार, उद्योग, वाणिज्य और व्यवसाय से शैक्षणिक संस्थानों के विकास में उदारतापूर्वक योगदान देने की अपील करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा में किया कोई भी निवेश हमारे भविष्य, आर्थिक उत्थान, शांति और स्थिरता में निवेश है।