
रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में जारी चातुर्मासिक प्रचवनमाला में बुधवार को उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज ने जीवन में सत्य को अपनाने की सीख दी। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जीवन को अच्छा बनाना है तो सत्य को जानने और मानने के साथ अपनाना भी है। जीवन को अच्छा बनाने का दृढ़ संकल्प होना चाहिए। संकल्प जिसका जितना गहरा होगा, उसका जीवन उतना अच्छा होगा। जो व्यक्ति कितनी भी गलती करें लेकिन उसको जानने और समझने की लगन बढ़ गई तो वह सुधार कर सकता है। सुलभबोधी बनना है और पुरुषार्थ करना है।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि सत्य को समझते जाएं। सत्य को अपनाते जाएं। नकारात्मक विचार नहीं लाना है। हमारी आग्रह बुद्धि ही हमें आगे बढ़ने नहीं देती है। इसको छोड़ना है और सत्य को जानना है। सत्य को जानने के साथ मनाना भी है और अपनाने का प्रयास भी करना है। श्रावक का मूल व्रत है सम्यक्त्व अर्थात सत्य के प्रति निष्ठा का संकल्प करना। 12 व्रत में 5 अणुव्रत, 3 गुण व्रत और 4 शिक्षा व्रत है। इन 13 व्रतों को हमें ग्रहण करना है।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि 13 व्रतों को ग्रहण करने का संकल्प होना चाहिए। व्रत को ग्रहण करने से भीतर में आसक्ति मिटना चाहिए। भीतर से कषाय में मिटना चाहिए। जीवन में शुभ संकल्पों को ग्रहण करना है। पहले भाव शुद्धि होना चाहिए। फिर द्रव्य शुद्धि होनी चाहिए। पहले भीतर का विकास और बाद में बाहर का विकास होना चाहिए। भीतर का विकास तत्व चिंतन से होगा। तत्वों का श्रवण कर अपना बोध होना चाहिए कि मैं ही आत्मा हूं और शरीर नश्वर है। कर्म बंधन से बचकर ही भला होगा।
उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जिन शासन देव,गुरु और धर्म से आपको जोड़ता है। इनके प्रति श्रद्धा होना चाहिए। यही श्रद्धा शुरुआत से अंत तक सहयोग करती है। श्रद्धा ही आपको देव,गुरु और धर्म के निकट लाती है। श्रद्धा होगी तो इनके बताएं मार्ग में चलोगे। श्रद्धा का होना बहुत जरूरी है। श्रद्धा के लिए हम सम्यक्त्व व्रत लेते हैं। सदैव नियमों का पालन व देव, गुरु और धर्म की शरण में रहना है। अणुव्रतों में पहला व्रत अहिंसा का पालन करना है। जीवन बड़ा मूल्यवान है। स्वयं का जीवन मूल्यवान है तो दूसरे का जीवन भी मूल्यवान है। हिंसा नहीं करना है। सदैव अहिंसा में जीना है।