छत्तीसगढ़राज्य

मोह के बंधन से मुक्त होने पर ही मिलेगा सत्य : मनीष सागर

रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में चातुर्मासिक प्रचवनमाला जारी है। शुक्रवार को उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज ने कहा कि मोह के बंधन से निकलने पर ही व्यक्ति सत्य तक पहुंचता है। सत्य तक पहुंच कर ही आनंद में रहता है। पर में सुख नहीं है। असली सुख स्व में है। व्यक्ति सत्य को समझ जाए तो कर्मों की निर्जरा करता है। हम सत्य को समझने की चेष्टा नहीं करते हैं। सत्य तक पहुंचने के लिए सत्य के करीब जाना होगा। प्रतिमा को परमात्मा मानते हैं और पूजा करते हैं। हमें परमात्मा का आलंबन लेकर भीतर के परमात्मा तक पहुंचना है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि संसार में व्यक्ति की इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होती। और अधिक पाने की चाह व्यक्ति को हमेशा सताती रहती है। व्यक्ति सिर्फ भावों की उत्पत्ति में ही नहीं फंसता बल्कि भावों के साथ चिपक जाता है। व्यक्ति इस चक्रव्यूह से निकल नहीं पता। भावों की उत्पत्ति ही दुख का कारण है। कर्म बंधनों से हटकर संसार के चक्रव्यूह से बाहर आ जाता है। 



उपाध्याय भगवंत ने कहा कि व्यक्ति पाप करता है तो पाप को भोगता है। थोड़ा पुण्य इकट्ठा हो जाए तो सद्गति में जाता है। सद्गति में आकर इच्छाएं फिर पाप कराती है। व्यक्ति इस पाप पुण्य का बंध करते-करते संसार के चक्रव्यूह से निकल नहीं पाता। व्यक्ति पाप और पुण्य के जाल में उलझा रहता है और अंततः वह संसार के चक्रव्यूह से निकलने में असमर्थ हो जाता है। यही उसे बार-बार भटकाता।

 

 



उपाध्याय भगवंत ने कहा कि व्यक्ति स्वार्थ और सम्मान इन दो के चक्कर में फंसे रहता है। स्वार्थ व सम्मान हमेशा वस्तुओं के लिए ही होता है। नहीं मिले तो स्वार्थ सताता है और मिल जाए तो सम्मान सताता है। व्यक्ति पहले कुछ नहीं होते हुए भी दुखी रहता है। उसे लोभ सताता रहता है। सब कुछ मिल गया तो भी दुखी रहता है। मिलने के बाद अहंकार सताता है। और आगे बढ़ने की लालसा सताती है। सम्मान का तनाव बना रहता है। व्यक्ति को ये दुख हमेशा सताए रहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button